Monday, August 31, 2009

Random Thoughts Penned Down. Very Random! x')

कुछ एक अधूरी ख्वाहिशें तेरी संग आधी-अधूरी कुछ पूरी हुईं मेरी
काफी कुछ मिला है बरसों बंद पड़ी इस अलमारी में|
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कुछ लम्हे गिर पड़े तेरे दर पर, कल जो आओ तो लेते हुए आना
दीवार घड़ी कुछ खुश नहीं है, आज|
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आतिशें, शोला, चिंगारी सब छू लिया मैंने, अब जो समां है
बयां करू के होश कुछ कम है|
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वो जो छुपा रहता है तेरी आँखों में कहीं, इक कतरा सा है
कम्बक़्ह्त मुझे दिखता क्यूँ है?
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तेरी तलाश को निकला था जाने किस फिराक में, या खुदा
जो मिला तो होश तक गुम था.
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घडी के कांटे रुक गए आज फिर हूबहू पहले की ही तरह
भूलने की कोशिश में याद किया होगा|
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झगड़ा जो हुआ आसमां में टूट गिरा इक बादल का टुकड़ा
अब कई रोज़ बरसात न हो शायद|
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अब जो रिश्तों पर गोंद लगाओ, पोंछ लेना भींगे कपड़े से
के कई शब अकेली भींगी हैं वो|
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बीत जा मुझपे गर आना ही है, अनहोनी की घड़ी रुकने वाली कहाँ
घड़ी से याद आया, एक बंद पड़ी है बरसों से|
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टूटा-फूटा नहीं जुडा-जुडा सा ही चाहिए, रंग नीला खूब फ़बेगा
ख़रीद-फ़रोख्त नहीं, ज़िन्दगी है|
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मतलों-मक़तों की होड़ जो लगी ज़हन में तो सियाही न मिली
खैर हरेक को सबकुछ मिला कहाँ है|

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